January 12, 2012

यहाँ दूल्हे ढूँढने नहीं, खरीदने पड़ते हैं!

यहाँ दूल्हे ढूँढने नहीं, खरीदने पड़ते हैं! ये बात मेरे मन में कई बार आती है. मैं ऐसा सोचना नहीं चाहती, कहना भी नहीं चाहती, क्युकी मैं अपने परिवार और समाज के द्वारा बनाये गए रीति रिवाजों का सम्मान करना चाहती हूँ. पर फिर भी जाने अनजाने यही समाज बार बार मुझे यही सोचने पे मजबूर कर देता है. जीवन में जब भी किसी शादी में जाने का मौका  मिलता है तो हर शादी में मुझे यही महसूस होता है की यहाँ लोग दूल्हे खरीदते हैं. अगर आपके पास पैसा है तो आप को कोई अच्छी नौकरी करने वाला और अच्छे परिवार का लड़का बहुत आसानी से मिल जायेगा अपनी बेटी के लिए. (अच्छी नौकरी मतलब बहुत ज्यादा तनख्वाह वाली और अच्छा परिवार मतलब बहुत अमीर, यहाँ अच्छे का मतलब नैतिक मूल्यों से तो नहीं हो सकता). हाँ तो वो अच्छा लड़का और अच्छा परिवार मिलेगा इसीलिए क्युकी आप खूब सारा दहेज़ देकर दूल्हा खरीद सकते हैं !

जब भी मुझे अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में जाने का अवसर मिलता है तो ये देख कर आश्चर्य से ज्यादा दुःख होता है की लोग आत्म-प्रशंसा करते हुए बहुत बढ़ा चढ़ा कर ये बताते हैं की उन्होंने कितना दहेज़ दिया अपनी बेटी की शादी में. ये उनके लिए status symbol है. हमारे एक relative ने अपनी बेटी की शादी में ११ लाख रुपये दहेज़ में दिए और घर का सामान भी जैसे fridge , वाशिंग मशीन, वगैरह. और उन्होंने ये भी बताया की लड़का बहुत अच्छा है, MCA किया है, उसकी तनख्वाह भी १ लाख रूपया महीना है. मैं सोच रही थी की अगर वो इतना अच्छा है तो इतने सारे पैसे दहेज़ में लेने की ज़रूरत क्यों पड़ी? तो पता चला की वो नहीं विश्वास करता इन सब बातों में, उसके परिवार वालों की इच्छा थी. आखिर बेटे को इतना पढाया लिखाया, वो इतनी अच्छी नौकरी में है, शादी के खर्चे भी हैं, इसीलिए दहेज़ की ज़रूरत पड़ी! तो  दूसरा सवाल मेरे मन में आया की क्या लड़की को पढ़ने लिखने में पैसे खर्च नहीं होते? उस लड़की ने भी तो MCA किया था, नौकरी भी कर रही थी, और उसके परिवार वालों के पास भी तो शादी के अन्य खर्चे थे? फिर लड़के वालों के खर्चे भी वे ही क्यों उठाएं??

पर फिर भी ये सवाल इन लोगों के लिए बेमानी थे. क्योंकि न तो लड़के वालों के पास पैसों की कमी थी और न ही लड़की वालों के पास. एक ने माँगा और दुसरे ने जितनी मांग थी उससे ज्यादा ही दिया. और खूब वाह वाही बटोरी. शादी में आये सभी लोगों ने खातिर दारी की बहुत तारीफ करी और दहेज़ की रकम सुन के सबको आश्चर्य चकित करने का मौका लड़की वालों ने हाथ से न जाने दिया. पर फिर एक अहम् सवाल ये खड़ा हो जाता है की ये तो upper -middle class लोग थे जिन्होंने सारे खर्चे आसानी से उठा लिए. पर साथ ही में उन लोगों ने अन्य लड़के वालों को और ज्यादा दहेज़ की मांग करने के लिए प्रोत्साहित भी किया. और जब बेटी का पिता गरीब हो, middle या lower middle क्लास का हो तो वो लड़के वालों की इन बढती मांगों को कैसे पूरा कर पायेगा?? तो क्या गरीब परिवार की पढ़ी लिखी और सुयोग्य लड़की को भी अच्छा लड़का नहीं मिलेगा शादी के लिए? क्योंकि नौकरी शुदा, पढ़े लिखे लड़के तो बहुत महंगे  हैं! उनसे शादी करवाने के लिए लड़की के पिता को बहुत सारा दहेज़ देना पड़ेगा!  और कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी ऐसे लड़के से करवाना नहीं चाहेगा जो नौकरी न करता हो या शिक्षित न हो |

 अभी कुछ दिन पहले किसी ने मुझे अपने किसी दोस्त की कहानी सुनाई की वो गए थे लड़की को देखने, वहाँ उसके पिता हो heart - attack आ गया और उनकी अंतिम इच्छा थी की उनकी बेटी की शादी हो जाये. तो उनकी शादी हो गयी जल्दबाजी में. इस वाकये को सुनाने के बाद मेरे दोस्त का कमेन्ट था "बेचारे फंस गए!" मैंने पूछा, "ऐसा क्यों?" तो उसने कहा, "उनको शादी करनी पड़ गयी, लड़की पसंद रही हो चाहे नहीं."  मैंने सोचा शादी में लोग सबसे पहले लड़की की फोटो ही देखते हैं, हर तरह से उसके रूप-रंग को लेकर आपस में discuss करते हैं, तभी बात आगे बढती है और लोग लड़की को देखने जाते हैं. फिर इसका क्या मतलब की पसंद रही हो या नहीं? अगर पसंद नहीं थी तो क्या फोटो देख कर नहीं समझ आया था? लड़की को देखने जाने की क्या ज़रूरत थी? वो एक लड़की थी कोई सामान तो  नहीं? तो देखने के बाद ही पता चलता की अच्छी है या नहीं!! और पसंद न आती तो मन कर देते शादी करने से? शायद ये लोग कभी इस बात को नहीं समझ सकते की जब किसी लड़की को देखने के बाद लोग शादी से मन कर देते हैं तो उसके मन पर क्या बीतती है!! आखिर उसकी भी तो भावनाएं होती हैं. उसे तो लड़के को देख कर पसंद या नापसंद करने का मौका नहीं दिया जाता? क्यों? क्योंकि वो लड़की है और उसके परिवार वाले किसी भी लड़के से उसकी शादी करने को तैयार हैं, बस वो पसंद कर ले? शायद इसी वजह से दूसरों को और बढ़ावा मिलता है लड़की को नापसंद करने का?

अपना घर छोड़कर एक अनजान परिवार में अनजान लोगों के बीच तो लड़की को जाना पड़ता है. ज़िन्दगी तो उसकी दाँव पे लगती है. तो उसे ये हक़ क्यों नहीं दिया जाता है की वो लड़के की फोटो देख कर उसे पसंद करे, उसके परिवार को जांचे परखे और फिर शादी के लिए हाँ या न करे?

देखा ये भी गया है की जो लोग दहेज़ की मांग करते हैं और लड़की के परिवार वाले उनकी मांगों के हर तरह से कहीं से भी उधार लेकर सम्बन्धियों से मांगकर पूरा कर देते हैं, तो उनकी दहेज़ के प्रति लालसा और बढ़ जाती है. वो शादी से पहले ही नहीं, शादी हो जाने के कई साल बाद तक भी किसी न किसी बहाने से कुछ न कुछ मांगते ही रहते हैं!! ऐसे लोगों को एक बार ये ज़रूर सोचना चाहिए की जिस लड़की को वो अपने परिवार का हिस्सा बनाकर लाये हैं, अगर उसके परिवार वालों को दहेज़ के लिए इतना परेशान किया जायेगा, तो क्या वो लड़की कभी उनके परिवार को, अपने ससुराल को मन से अपना पाएगी? क्या वो अपने ससुर को वो इज्ज़त दे पायेगी जो अपने पिता को देती है? ये जानते हुए की उसके ससुरजी ने उसके पिता को क़र्ज़ लेने को मजबूर कर दिया? क्या वो कभी इस परिवार को अपना परिवार मान पायेगी? जहां उसके परिवार के लोगों को परेशान किया गया हो? उनकी गरीबी का मज़ाक उड़ाया गया हो लड़की का पिता होने का दंड दिया गया हो??

अगर अपने बेटे क लिए अच्छी लड़की ढूंढनी ही है तो फोटो देखकर उसकी सुन्दरता का आंकलन ही क्यों किया जाता है केवल? क्या सुन्दरता से ये बात सिद्ध हो जाती है की लड़की सुयोग्य भी होगी? और उसके रंग रूप का आंकलन करेती वक़्त ज़रा एक बार खुद भी आइना देख लें तो बेहतर नहीं होगा? फिर उस लड़की को भी ये हक़ होना चाहिए के वो लड़के का भी उसी प्रकार निरीक्षण करे? की वो सुन्दर है या नहीं? उसका जीवनसाथी बनने काबिल है या नहीं? उसे ज़रूरत पड़ी तो घर के काम कर सकेगा या नहीं? और अगर लड़की इतना दहेज़ लेकर (इतना पैसा देकर) लड़के को अपना रही है तो ये सब जानना तो अधिकार है उसका!!

अजीब लगता है जब इस तरह विवाह करने वाले लोग विवाह पश्चात भी सुखी नहीं रह पाते हैं तो. जब अपनी बहु की बुराई करते हैं, रिश्तेदारों से उसकी कमियाँ गिनाते हैं तो, शादी के वक़्त तो वही बहुत अच्छी लगी थी? क्योंकि बहुत सारा दहेज़ लेकर आ रही थी? अब क्या बदल गया? यही की वो हर रोज़ कुछ अपने मायके वालों से मांग कर क्यों नहीं लाती? ऐसे लोगों के बेटे भी अगर माता-पिता के पास नहीं आते मिलने के लिए या घर के खर्चों में हाथ नहीं बंटते तो भी दोष बहु का ही होता है? क्यों? दहेज़ की मांग करते वक़्त ये सब बातें तो तय नहीं हुई थी? फिर? अब क्यों आस लगायी जा रही है??

मैं ये नहीं कह रही की इस दुनिया में सभी लोग ऐसा करते हैं. दुनिया में सब एक जैसे नहीं होते. कई लोगों के अनुभव इससे अलग होंगे. कुछ लोग दहेज़ विरोधी भी होते हैं जो अपने बेटे-बेटियों की शादी बिना दहेज़ लिए और दिए करते हैं. पर फिर भी ये रीति इतनी मजबूती से हमारी जड़ों को जकड रही है की डर लगता है, ये समाज को खोखला न कर दे? सबके लिए अभिशाप न बन जाये. अधिकता हर चीज़ की बुरी होती है. पहाड़ की ऊंचाई देखकर बहुत अच्छी लगती है पर उसपे पहुचने के बाद जीना उतना ही मुश्किल हो जाता है. ऊंचाई पे पहुँचने के बाद फिर नीचे आना ही पड़ता है. पेड़ का तना कितना भी मजबूत हो पर अगर जड़ ही कमज़ोर हो जाएगी तो वो भी ज्यादा दिन खड़ा नहीं रह सकता.....और हम तो अपने लिए खुद ही पतन का रास्ता तैयार कर रहे हैं? क्या आपको ऐसा नहीं लगता??



अगर नहीं लगता, तो हमें एक और ब्लॉग पोस्ट लिखनी होगी. इंतज़ार कीजिये हमारी अगली पोस्ट का, :( :(

8 comments:

  1. सहमत हूँ आप से।


    सादर

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  2. Agar Dulhe khareede jate hai..to dulhane bechi jati hai...ye samaj ne ek dastoor bana liya hai...agar apko isse taklif hai to badaliye ye ....bt bina koi soch ke samaj ko gaiya mat dijiye

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  3. hamne pehle bhi apni post me kaha hai ki sab log aise nahi hotey. Lekin haan, jo log aise hotey hain shayad aapka saamna nahi hua unse kabhi.......

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  4. Aparajita jee,
    Aapne jo bhi likha hai ekdam sach hai,lekin ye sikke ka ek pahlu hai our dusara ye ki larki vale bhi to ache se achhaa larka dekhte hai ,dono mai phark sirph itna hai ki larki ko larke k ghar par hi apni zindgi gujarni hoti hai.
    aapne jo dahej wali bat liki hai us bat se mai poori tarha se sahmat hun aur vo nahi hona chahiye.

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  5. Ji Amarshiv ji, sahi kaha aapne har sikke k do pehlu hotey hain. Duniya me har tarah k log hotey hain. par fir bhi jo kuchh galat hota hai use yu hi nazar andaaz to nahi kiya ja sakta.

    kabhi kabhi yu lagta hai jaise betiya maa-baap k liye bojh ho jati hain jise wo zald se zald kisi aur k ghar bhej dena chahtey hain taki samaaj unhein kuchh na kahe. :(

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  6. I am agree with u mam...........
    its real not imagine

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  7. बहुत ही सुन्दर लेख..........

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  8. पैसा कमाना नही जानते तो हाथ फ़ैला दिया
    कुछ ऐसे ही लोगों ने दूल्हे को बिकाऊ बना दिया
    दहेज लेकर अपने को बड़ा दिखाते हो
    एक भिखारी और तुम लोगों में क्या फ़र्क रह गया

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